व्यवसाय या नौकरी, चाहे आप कुछ भी करते हो, कई बार इसकी व्यस्तता हद से ज्यादा बड़ जाती है। किसी भी काम को करने का उद्देश्य यही होता है कि मनचाहा फल प्राप्त हो सके। इसका लंबे घंटो की कड़ी मेहनत से कोई लेना- देना नहीं होता। सभा किसी भी संस्था का अभिन्न अंग नही होता हैं।
मेरा एक मित्र ऐसे छोटे-छोटे मुद्दों पर भी मीटिंग बुलवा लेता है जहां एक नोट या मीमो भी काफी होता। जब मैंने उससे इस बारे में पुछा तो उसने कहा कि वह कोई भी फैसला लेने से पहले दूसरों से जानकारी और नजरिए एकत्र कर लेना चाहता है। कोई भी मीटिंग तभी बुलाई जानी चाहिए जब उसकी सही मायने में जरूरत हो, क्योंकि यह हमेशा जानकारी एकत्र करने का सही माध्यम नहीं होती। मीटिंग से क्या उम्मीदें है, उन्हे स्पष्ट रूप से सबके सामने रखा जाना चाहिए तथा एजेंडा प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
बेहतर तो यही है कि एजेंडा सबको पहले बाट दिया जाए ताकि लोग उसे पढ़कर पूरी तैयारी के साथ आए और बेहतर नतीजा मिल सके। यदि मीटिंग का प्रत्येक सदस्य अपने-अपने तरीके से तैयार होकर आएगा तो उत्पादक परिणाम सामने आएगे। मीटिंग के शुरू और खत्म होने का भी समय देना चाहिए। अगर आप को लगे कि किसी खास मुद्दो पर चर्चा में ज्यादा समय लग रहा है तो आप उसे दूसरी मीटिंग के लिए छोड़ दे। ताकि सभी नई मीटिंग में उस मुद्दे पर खुल कर चर्चा कर सकें।
4/25/09
4/11/09
देने वाला चाहे कितना भी ताकतवर हो......
देने वाला चाहे कितना भी ताकतवर हो
वह केवल वही दे सकता है, जो कि उसके पास है
यकीन नहीं आता, तो मांग के देख लो
चॉदनी से धुप, रेगिस्तान से हरियाली
समंदर से मिठास, और पानी से प्यास
नही मिलेगी न? तो फिर क्यो मांगते हो
मगर मांगने वाला भी वही मांगता है
जो उसके पास नहीं होता
वह केवल वही दे सकता है, जो कि उसके पास है
यकीन नहीं आता, तो मांग के देख लो
चॉदनी से धुप, रेगिस्तान से हरियाली
समंदर से मिठास, और पानी से प्यास
नही मिलेगी न? तो फिर क्यो मांगते हो
मगर मांगने वाला भी वही मांगता है
जो उसके पास नहीं होता
4/6/09
दिल्ली में आने के बाद मेरी आपबीती
1 जुलाई 2007 को मैं पहली बार दिल्ली आया। दिल्ली आने के बाद मैं 10 रोज खुब घुमा बड़ा ही मजा आया मेट्रो में बस मे आटों में बैठकर जो दिल्ली की खास जगहे थी सबको घुमा और 10 दिन बाद वापस घर जाने की तैयारी करने लगा तो दिदि बोली यहां पर कुछ ट्राई क्यों नहीं करते हो पढ़ाई भी तुम्हारी पूरी हो चुकी है। तो मैनें पता किया कि सेक्टर 40 में एक मैडम मीडिया मैगजीन निकालती है। मैंने सोचा एक बार इंटरव्यू देने में क्या दिक्कत है। मैने वहां के आफिस में फोन किया तो मैडम ने बोली तुम 14 जुलाई को इंटरव्यू देने आ जाना। मै उस दिन गया तो मेरा जमकर इंटरव्यू हुआ। आखिरकार मेरा वहां पर हो गया। 7 महिना वहां पर काम किया फिर मैंने उस काम को छोड़ दिया। दिदि से बोला कि मैं कुछ दिनों के लिए घर जाना चाहता हूं क्योंकि मां कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है। तो मै घर गया वहां पर डेढ महिने रहा। वापस आया तो मैं 24 फरवरी को लुधियाना दैनिक भास्कर में गया वहा संपादक राजिव सर ने मेरा इंटरव्यू लिया मेरा वहा हो गया। और मैं 25 फरवरी को ज्वांइन भी कर लिया। वहां पर मैंने चार महिने काम किया। फिर वापस दिल्ली आ गया। और मै यशवंत सर के साथ भड़ास4मीडिया मे काम करने लगा। दिल्ली जैसे अनजान शहर में मैंने यशवंत सर से बहुत कुछ सिखा और अभी भी सिख रहा हूं।
दीपक सिंह
दीपक सिंह
3/28/09
सपन मनभावन हो सखिया....
सूतल रहलीं
सपन एक देखलीं
सपन मनभावन हो सखिया।
फूटलि किरनिया
पुरुब असमनवा
उजर घर-आंगन हो सखिया।
अखिया के नीरवा
भइल खेत सोनवात
खेत भइलें आपन हो सखिया।
गोसयां के लठिया
मुरइया अस तोरलीं
भगवलीं महाजन हो सखिया।
केहू नाहीं ऊंच-नीच
केहू का ना भय
नाहीं केहू बा भयावन हो सखिया।
बइरी पइसवा केरजवा मेटवलीं
मिलल मोर साजन हो सखिया।
-गोरख पांडे
सपन एक देखलीं
सपन मनभावन हो सखिया।
फूटलि किरनिया
पुरुब असमनवा
उजर घर-आंगन हो सखिया।
अखिया के नीरवा
भइल खेत सोनवात
खेत भइलें आपन हो सखिया।
गोसयां के लठिया
मुरइया अस तोरलीं
भगवलीं महाजन हो सखिया।
केहू नाहीं ऊंच-नीच
केहू का ना भय
नाहीं केहू बा भयावन हो सखिया।
बइरी पइसवा केरजवा मेटवलीं
मिलल मोर साजन हो सखिया।
-गोरख पांडे
पूरबिहा ब्लाग में आप लोगन क स्वागत बा
ब्लागिंग में शुरुआत कय देहलीं। ब्लाग बन गइल। अब देखीं केतना लिख पावेलीं। आप सब पूरबिहा लोगन के प्रनाम। गाइड करत रहीं। कउनो गलती होई त माफ करब। परनाम।
दीपक सिंह
दीपक सिंह
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